Trip to Jageshwar Dham Temple, Almora Uttarakhand
Jageshwar Dham Temple, Almora Uttarakhand: उत्तराखंड के अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जागेश्वर धाम मंदिर है जो कुल 250 छोटे-बड़े मंदिरों से मिलकर बना हुआ भव्य मंदिर का समूह और इसे उत्तराखंड का पांचवा धाम भी कहा जाता है और यह भी कहते हैं कि जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपस्थली दी थी और यहीं से शिवलिंग की पूजा आरंभ हुई थी |
प्राचीन काल में जागेश्वर धाम में मांगी गई मनोकामनाएं उसी रूप में पूरी की जाती थी जिस रूप में मांगी जाती हो | जिसकी वजह से इसका भारी दुरुपयोग होने लगा तब आठवीं सदी में शंकराचार्य आए और उन्होंने इस व्यवस्था को बदला और तब से लेकर उन्हीं की मांगे पूरी की जा सकती हैं जब यज्ञ और अनुष्ठान ध्यान से पूजा अर्चना की गई हो |
जागेश्वर धाम को योगेश्वर के नाम से भी जाना जाता है| जहां पर मंदिर की कलाकृति से लेकर बारहवीं शताब्दी का प्रमाण मिलता है और कुछ तो बीसवीं शताब्दी के मिलते हैं वैसे तो इसका कोई प्रमाण नहीं है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि गुप्त काल के राजा katyuri जो उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के राजा थे उन्होंने इसका निर्माण कराया क्योंकि यह मंदिर उसी काल की मानी जाती है और कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि यहां पर भगवान राम के पुत्र लव कुश भी यहां आए थे जिन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था|
इस मंदिर में भगवान शिव के अलावा भगवान विष्णु और मां दुर्गा की प्रतिमा भी मिलती है| वैसे तो यहां पूरे साल तीर्थ यात्रियों का आवागमन लगा रहता है मगर श्रावण मास के महीने में जहां एक प्रमुख मेला लगता है और उस टाइम पूरे देश से लोग यहां आते हैं और इस मेले का आनंद उठाते हैंI
जागेश्वर धाम मंदिर के समान भारत में कुछ और मंदिर देखने को मिल जाते हैं जैसे ओडीशा का लिंगराज मंदिर जो काफी हद तक जागेश्वर मंदिर के समान दिखता है और दूसरा मध्य प्रदेश के चंबल घाटी के बटेश्वर धाम मंदिर शो काफी हद तक एक समान कलाकृतियां देखने को मिल सकती हैl
देवदार के रूप में शिवशक्ति
जागेश्वर धाम की तरफ जाने वाले रास्ते देवदार के पेड़ों से सजे हुए दिखाई देंगे और यहां के देवदार इतनी विशालकाय और मोटे होते हैं कि इतने विशालकाय देवदार उत्तराखंड में कहीं और देखने को नहीं मिलते और यहां की घाटी इतनी खूबसूरत लगती है कि मानो पूरी घाटी देवदार के पेड़ों से बादलों की तरह गगनचुंबी दिखाई दे रही हो और कुछ जगहों पर तो इतने घने देवदार के पेड़ हैं कि दिन के समय सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंच पाते और उन इलाकों में बहुत ज्यादा ठंड और छाव बनी रहती है|
जागेश्वर मंदिर के मुख्य भाग में पीछे की तरफ वहां के सबसे बड़े देवदार का देवदार का वृक्ष है जिसे शिव शक्ति के नाम से भी जाना जाता है जिसका मुख्य कारण यह है कि यह देवदार जमीन से एक मोटी जड़ से निकला हुआ है लेकिन जैसे से यह ऊपर की तरफ जाते हैं देवदार के वृक्ष वह मध्य भाग से दो भागों में विभाजित होकर दो अलग-अलग वृक्ष बन जाते हैं जिसे देखकर ऐसा लगता है कि नीचे से देवदार एक ही है मगर ऊपर की तरफ एक शिव और दूसरा पार्वती माता का रूप लिए हुए हो और तकरीबन इस देवदार वृक्ष की मोटाई 18 से 20 फीट की होगी और ऊंचाई तकरीबन ढाई सौ फीट से ज्यादा |
कैसे और कब जाएँ?
जागेश्वर धाम जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा और फिर 35 किलोमीटर जागेश्वर धाम पहुंच सकते हैं वैसे तो अगर आप दिल्ली या उसके आसपास के क्षेत्र से आ रहे हो तो सबसे सुलभ तरीका यही है कि आप अपनी प्राइवेट गाड़ी करके आए और दिल्ली से करीब 350 किलोमीटर की दूरी पर जागेश्वर धाम मंदिर पड़ता है और आप आसानी से वहां पहुंच सकते हैं I
यहां पहुंचने के लिए 8 से 9 घंटे लगते हैं लेकिन अब 1 दिन नैनीताल में रुक कर भी अगले दिन यहां पर आ सकते हैं जिससे आपकी यात्रा शुभ रहे और ज्यादा तनावपूर्ण नहीं बनेI
जागेश्वर धाम के पास प्रमुख मंदिर:
वैसे तो हमारे हिंदू धर्म के जितने भी प्रमुख मंदिर होते हैं भारत में उन मंदिरों के आसपास में और भी बहुत सारे प्रमुख मंदिर होते हैं जो आपकी यात्रा को और पवित्र और रोमांचक बना देते हैं तो आइए जानते हैं कौन कौन से ऐसे मंदिर है जो जागेश्वर धाम के पास हैं और आप अगर जागेश्वर धाम जा रहे हो तो इन मंदिरों पर जा सकते हैं|
वृद्ध जागेश्वर या बूढा जागेश्वर-
वैसे तू यह मंदिर बहुत कम लोगों को मालूम होता है लेकिन इसके पीछे भी एक बहुत बड़ा रहस्य है और वह यह कि यहां केवल वही लोग जा सकते हैं जिनको यहां पर बुलावा आता है और इनके अलावा कोई नहीं जा सकता इसीलिए यहां पर बहुत कम भीड़ इकट्ठी होती हैI
वृद्ध जागेश्वर मंदिर का एक रहस्य यह भी है कि यहां पर बाबा भोलेनाथ का जो शिवलिंग है और शिवलिंग के बराबर में जो जल प्रवाह के लिए क्यारी बनती है उसके में जो जल भरा होता है और उस भरे हुए जल की गहराई पाताल लोक तक जाती है जिसका कोई अंत नहीं है और आज तक इसकी गहराई कोई भी नहीं नाप सका हैI
भारतीय पुरातत्व के संरक्षक भी यहां आकर इसका प्रमाण लिए मगर इसकी गहराई पता नहीं चल सकी और यह भी कहा जाता है कि भोलेनाथ का जो शिवलिंग है वह भी पाताल लोक तक गया हुआ हैI यह कुछ भौतिक एवं साइंटिफिक तथा धार्मिक पकती हैं जिसकी वजह से वृद्ध जागेश्वर मंदिर प्रसिद्ध हैI
वृद्ध जागेश्वर मंदिर जाने के लिए जागेश्वर मंदिर के रास्ते से ठीक 8 किलोमीटर पहले बाय तरफ से एक रास्ता गया है जो 7 किलोमीटर के बाद वृद्ध जागेश्वर मंदिर तक रुकता है
वृद्ध जागेश्वर मंदिर की तरफ जाने वाले रास्ते बहुत ही खूबसूरत हैं और रास्ते में उत्तराखंड का प्रसिद्ध फूल बुरांश के पेड़ देखने को मिलते हैं जिसके फूल रास्ते में ऐसे बिखरे हुए दिखेंगे मानो भोले की नगरी आपके स्वागत के लिए तैयार होI मगर उतना ही रिस्क भरा यह रास्ता है क्योंकि दूसरी तरफ बहुत ही गहरी खाई है तो जरा संभल के जाना पड़ता हैI
वैसे तो वृद्ध जागेश्वर मंदिर आप सीधे जागेश्वर मंदिर से भी 3 किलोमीटर पहाड़ी के ऊपर ट्रैकिंग करके पहुंच सकते हैंI
कसार देवी मंदिर (चुंबक की शक्तियों का मंदिर)-
उत्तराखंड के सबसे रहस्यमई और प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है कसार देवी माता का मंदिर वैसे तो आप यहां पूरे साल भर आ सकते हैं लेकिन नवरात्रि की समय यहां पर भक्तों की लंबी भीड़ लगी रहती हैI
यहां आने के लिए अल्मोड़ा से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है पौराणिक रूप से इसके बहुत सारे महत्व हैं वैसे तो धार्मिक रूप से यह कहा जाता है कि मां दुर्गा का आठवां रूप माता कात्यायनी ने अपना रूप लिया था और वह इसलिए क्योंकि उस वक्त दो राक्षस है शुम्भ-निशुम्भ राक्षसों का वध करने के लिए माता कात्यायनी ने अवतार लियाI
इसके अलावा वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि मंदिर एक छोटी सी गुफा में बना हुआ है और उस मंदिर के ठीक नीचे एक विशाल चुंबकीय पिंड मौजूद है जिसकी वजह से यहां पर चुंबकीय शक्तियों का आभास होता है अगर कोई यहां पर एक लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करके महसूस करना चाहे तो उसे इन चुंबकीय शक्तियों का आभास जरूर होता है जिसका प्रमाण खुद स्वामी विवेकानंद जी ने अपनी किताब में जिक्र किया है और उन्होंने यह भी लिखा है कि उन्होंने अपनी सारी भौतिक चीजों को छोड़ सामाजिक कार्य में तभी लगे थे जब उनको जहां से ज्ञान का एहसास हुआ था| अट्ठारह के दशक में वह यहां पर आए और उन्होंने ध्यान किया था
कसार देवी मंदिर समान दुनिया के मुख्य तीन ऐसी जगह जहां पर आसपास चुंबकीय शक्तियां अनुभव की जाती हैं – पहले नंबर पर इंग्लैंड का Stonehenge, दूसरा साउथ अमेरिका का माचू पिच्छू और तीसरा उत्तराखंड का कसार देवी मंदिर ,
रहस्यमई तथ्यों की वजह से यहां पर पूरी दुनिया से लोग इस जगह पर घूमने के लिए आते हैं और इस मंदिर से ठीक ऊपर करीब 100 सीढ़ियां चढ़ने के बाद से भगवान शिव जी का भी मंदिर है जहां से आप पूरे अल्मोड़ा शहर के खूबसूरत नजारों का लुफ्त उठा सकते हैं और इतना खूबसूरत है कि आप का मन मोह लेगा, जो लोग यहां आते हैं वह भरपूर समय लेकर आते हैं ताकि यहां के सकारात्मक ऊर्जा को महसूस कर सके और वह कुछ देर यहां ध्यान जरूर करते हैं|
सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा:
अल्मोड़ा डिस्टिक से 30 किलोमीटर की दूरी पर है मंदिर पूरे भारत में केवल 2 मंदिरों में से एक है| पहला सूर्य मंदिर जो कोणार्क में स्थित है और दूसरा अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट में यह सूर्य मंदिर इतना प्रचलित है कि यह कहा जाता है कि सूर्य की पहली किरण सूर्य मंदिर के पास बने एक आयतकार क्षेत्र से होकर गुजरती है जिसके बाद से चारों तरफ प्रकाश प्रज्वलित होता है सूर्य की किरणों का|
यहां जाने के लिए आप प्राइवेट गाड़ी बुक कर सकते हैं जो 500 से ₹700 आने जाने के लेते हैं और आप लगभग 4 से 5 घंटे में इस मंदिर को घूम सके आ सकते हैं|
चितई गोलू देवता मंदिर-
यह मंदिर उत्तराखंड के कुल देवता का मंदिर है जहां पर लोग अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए आशीर्वाद लेने आते हैं ऐसा कहा जाता है कि उत्तराखंड के लोग इन्हीं देवता की वजह से अपने स्थान को पा सके हैं और इनकी कृपा की वजह से ही इनको पहाड़ों में रहने का अवसर मिला है जैसे हर राज्य के अपने एक कुलदेवता होते हैं ठीक वैसे ही उत्तराखंड के कुलदेवता चितई गोलू देवता को माना जाता है अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते से करीब 10 किलोमीटर पहले ही यह मंदिर आपको मिल जाएगा जहां पर आप जरूर दर्शन कर सकते हैं |
Overview
कैसे और कब जाएँ?
जागेश्वर धाम जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा और फिर 35 किलोमीटर जागेश्वर धाम पहुंच सकते हैं वैसे तो अगर आप दिल्ली या उसके आसपास के क्षेत्र से आ रहे हो तो सबसे सुलभ तरीका यही है कि आप अपनी प्राइवेट गाड़ी करके आए और दिल्ली से करीब 350 किलोमीटर की दूरी पर जागेश्वर धाम मंदिर पड़ता है और आप आसानी से वहां पहुंच सकते हैं I
यहां पहुंचने के लिए 8 से 9 घंटे लगते हैं लेकिन अब 1 दिन नैनीताल में रुक कर भी अगले दिन यहां पर आ सकते हैं जिससे आपकी यात्रा शुभ रहे और ज्यादा तनावपूर्ण नहीं बनेI